नई दिल्ली: दिल्ली नगर निगम में मेयर और डिप्टी मेयर के पद पर कब्ज़ा जमाने के लिए भारतीय जनता पार्टी नई रणनीति आजमा सकती है।
भाजपा अब आम आदमी पार्टी के पार्षदों से उनके आपराधिक पृष्ठभूमि के आधार पर मतदान का अधिकार छीनने की कोशिश कर सकती है।
समझा जाता है कि भाजपा ने आप के 25 पार्षदों की सूची तैयार की है जिन पर आपराधिक मामले दर्ज हैं या वे आरोपों का सामना कर रहे हैं।
उम्मीद की जा रही है कि बीजेपी एमसीडी हाउस के पीठासीन अधिकारी सत्या शर्मा को इन पार्षदों के वोटिंग अधिकार को वापस लेने के लिए अर्जी देगी। सूत्रों के मुताबिक इस कदम से मेयर के चुनाव में भाजपा जीत सुनिश्चित कर सकती है।
इस सप्ताह की शुरुआत में पीठासीन अधिकारी की इस घोषणा के बाद कि मेयर, डिप्टी मेयर और स्थायी समिति के सदस्यों के लिए मनोनीत सदस्यों को भी मतदान करने की अनुमति दी जाएगी, नगरपालिका सदन में हंगामा हुआ।
AAP पार्षदों को डर था कि पीठासीन अधिकारी के इस कदम के कारण इन महत्वपूर्ण पदों पर उनकी पार्टी हार जाएगी।
न्यूज़ड्रम ने पहले बताया था कि चंडीगढ़ नगर निगम में मेयर का पद हासिल करने के बाद भाजपा एमसीडी में भी कुछ वैसा ही करने की योजना बना रही है। भगवा मोर्चे द्वारा जिन विकल्पों पर विचार किया जा रहा था, उनमें से एक एल्डरमेन के लिए मतदान के अधिकार की मांग करना था। इन 10 नेताओं ने आप के गणित बिगाड़ दिया है।
हालांकि दिल्ली सरकार ने 16 फरवरी को मेयर के चुनाव कराने को मंजूरी दे दी है, लेकिन अगर बीजेपी के प्रस्ताव को स्वीकार किया जाता है तो बैठक में फिर काफी हंगामा हो सकता है।
पीठासीन अधिकारी ने भाजपा और आप के सदस्यों के हंगामे के बाद तीन बार, 6 जनवरी, 24 जनवरी और 6 फरवरी को महापौर चुने बिना एमसीडी सदन को स्थगित कर दिया।
यदि आपराधिक पृष्ठभूमि के आधार पर आप पार्षदों के वोटिंग के अधिकार छिन जाते हैं, तो अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी का गणित बिगड़ जाएगा।
एमसीडी चुनाव हुए दो महीने से ज़्यादा हो चुके हैं और राष्ट्रीय राजधानी को अभी तक मेयर नहीं मिला है। हालांकि, कानून के अनुसार, नगर निकाय चुनाव के बाद एमसीडी सदन के पहले सत्र में मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव होना होता है।
15 साल बाद एमसीडी में हार का सामना करने के बाद बीजेपी ने मेयर के चुनाव में जीत को प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया है।
बीजेपी ने जहां रेखा गुप्ता को मैदान में उतारा है, वहीं आप ने मेयर पद के लिए शैली ओबेरॉय को उम्मीदवार बनाया है। नगर पालिकाओं में दल-बदल विरोधी कानून लागू नहीं होने के कारण, भाजपा विभिन्न दलों के पार्षदों के साथ गठजोड़ के लिए भी अपने विकल्प खुले रखे हुए है।
दल-बदल विरोधी कानून विधानसभा और लोकसभा चुनावों में लागू होते हैं।
एमसीडी चुनावों में, आप ने 250 सदस्यीय नगर निकाय में 132 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि भाजपा को 104 सीटों पर जीत मिली थी। 9 पार्षदों और 3 निर्दलीय उम्मीदवारों के साथ कांग्रेस भी चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
इन पार्टियों के साथ-साथ दिल्ली के सांसद भी वोट डालने के पात्र हैं। मई 2022 में एमसीडी के एकीकरण के बाद से यह पहला चुनाव था।
भाजपा देश के सबसे अमीर और सबसे शक्तिशाली नागरिक निकायों में से एक एमसीडी पर कब्ज़ा जमाने के लिए तरह-तरह के जुगाड़ लगाने की कोशिश कर रही है। इनमें कांग्रेस सदस्यों और निर्दलीय पार्षदों से वोटिंग में हिस्सा नहीं लेने या उनसे बीजेपी को वोट देने की मांग करना भी शामिल है।
मेयर के चुनाव के बाद बीजेपी को उम्मीद है कि उसके नेता स्थायी समिति और अन्य महत्वपूर्ण समितियों के प्रमुख भी चुने जाएंगे।