कोमल है कमज़ोर नहीं तू, शक्ति का नाम ही नारी है।
सबको जीवन देनेवाली, मौत भी तुझसे हारी है।
शक्ति के रूप में माँ दुर्गा के नौ रूपों की आराधना को हमारी भारतीय संस्कृति में अनंत काल से ही मान-सम्मान प्राप्त है।
शक्ति के स्वरूप की अवधारणा नारी के रूप में ही क्यों की गयी? असंख्य देवों के वर्चस्व के बाद भी स्त्री को शक्तियों का केंद्र क्यों माना गया?
क्योंकि स्त्री अथवा नारी सचमुच अपार शक्तियों का संग्रह है। सभी दिव्य शक्तियां स्त्री रूप में ही सृष्टि में विराजमान मानी जाती हैं - जैसे धन की देवी माँ लक्ष्मी, ज्ञान की देवी माँ सरस्वती और शक्ति की देवी माँ दुर्गा।
विधाता ने स्त्री शरीर की रचना देखने में भले ही पुरुष से कमज़ोर की हो किन्तु हौसले और संघर्ष का जज़्बा रखने की अदम्य शक्ति के फलस्वरूप उसमें समय पड़ने पर प्रचंड शारीरिक बल स्वयं ही प्रकट हो जाता है।
मानसिक बल, सहनशीलता, संवेदनशीलता, मौन रहकर भी परिवार को एक सूत्र में बांधे रखने की अद्भुत क्षमता - यह सब गुण स्त्रियों में ही पाए जाते हैं। फिर क्यों हमारे समाज में आज नारी सशक्तिकरण चर्चा का विषय बनता है? जो खुद ताकतवर और प्रखर बुद्धि की स्वामिनी है, उसे शक्ति के लिए दूसरों पर क्यों आश्रित होना पड़ेगा?
हमारे समाज में पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक व्यवस्था का गठन इस प्रकार का है जिसमें स्त्री और पुरुष में भेद किया जाता है। आधुनिक समय में हम लाख यह दावा कर लें कि आज लड़के और लड़कियों में कोई भेदभाव नहीं है, लेकिन ये केवल खोखले दावे हैं। जमीनी हकीकत अभी भी कुछ और है।
आज भी स्त्री को हर जगह द्वितीय स्थान पर ही समझा जाता है और इसकी शुरुआत भी स्वयं उसके परिवार से ही होती है। विद्यालय, देवालय या कार्यालय कोई भी जगह हो, उसे मर्यादा का नाम देकर कुछ बंधनों को स्वीकार करना पड़ता है। इसमें दोष केवल पुरुषों का ही नहीं होता, स्त्रियां स्वयं ही ऐसे माहौल में रहते-रहते खुद को द्वितीय स्थान की ही अधिकारिणी मानने लग जाती हैं। पिता, पति, भाई और पुत्र सभी के लिए दिल में अपार स्नेह रखने वाली नारी स्वयं को गौण स्थान पर रखकर ही अपने जीवन की पूर्णता मान लेती है। यह एक स्त्री की कमज़ोरी नहीं बल्कि उसके विशाल ह्रदय की निष्ठा का परिचय है।
समाज की बेटियों, बहनों और माताओं को अपने को कभी भी कमज़ोर नहीं समझना चाहिए। यदि पुरुष आपके प्रेम और वात्सल्य का अधिकारी है, तो आपकी अवहेलना या तिरस्कार करने पर वह दंड का भी अधिकारी है।
अपनी सहनशीलता को अपनी बेड़ियाँ न बनने दें। अपनी सोच को विकसित कर अपने आप को महत्वपूर्ण समझें। जब विधाता ने अनेक शक्तियों के संग्रह के रूप में माँ दुर्गा की रचना की है तो निश्चित रूप से हर स्त्री शक्ति स्वरूपा माँ दुर्गा का अंश है। अपने दिलो-दिमाग पर इस मानसिकता को हावी न होने दें कि औरत हमेशा किसी पुरुष के अधीन रहकर ही सुखी रह सकती है। अपने अस्तित्व को प्रखर कर स्वयं में नवचेतना जगाएं। परिवार की मुस्कान बनने के लिए संघर्ष ज़रूर करें लेकिन अपने आँसू उसी के लिए बहाएं जो उनका मूल्य समझता हो।
जगा उन अनंत शक्तियों को, जो छिपी तेरे अंदर हैं।
तेरे आँचल में सदा लहराता, प्रेम का अथाह समंदर है।
आत्मसम्मान और स्वाभिमान से, कभी समझौता न करना।
हौसलों और मेहनत के पंखों से, जीवन की उड़ान भरना।